रसायन विज्ञान के बेहद महत्वपूर्ण तथ्य - RRB ALP & Group-D, and SSC CGL

1. एन्थ्रासाइट कोयले में सर्वाधिक कार्बन की मात्रा होती है । बिटुमिनस कोयला विश्व में सर्वाधिक पाया जाता है। पीट कोयला सबसे निम्न कोटि का कोयला है।

2. मोनोजाइट थोरियम का अयस्क है । भारत में थोरियम सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है । थोरियम पर आधारित फास्ट ब्रिडर रियक्टर कलपक्कम में स्थापित किया गया है।

3. पारा, पारदित समिश्रित मंे अनिवार्य रूप से सम्मलित होता है ।

4. कार्नेलाइट मैग्निशियम का खनिज है।

5. गन मैटल , ताॅवा टिन और जिंक का मिश्र धातु है।

6. हेमेटाइट लौह अयस्क होता है ।

7. चुना और कोयले का प्रयोग लौह अयस्क को प्रगलित करने में होता है ।

8. चीटियां काटती है तो वे फोर्मिक अम्ल अन्तःक्षेपित करती है ।

9. मिथाइल एल्कोहल पीने से अन्धता आती है।

10. फोटो ग्राफी में ‘‘स्थायीकर‘‘ के रूप में सोडियम थायोसल्फेट प्रयोग होता है ।

11. पानी आयनिक लवण का सुविलायक है क्योकि उसका द्विध्रुव आघुर्ण अधिक है। 12. सिरका एसिटिक अम्ल का जलीय विलयन है ।

13. सोडियम क्लोराइड लवणो का सागरीय जल की लवणता में अधिकतम योगदान होता है ।

14. लैक्टिक अम्ल, दूध में पाया जाता है।

15. साइटिंक अम्ल , नीबू मंे पाया जाता है।

16. ब्यूटाइरिक अम्ल, खराब मक्खन में पाया जाता है।

17. जल में अमोनिया आसानी से घुल जाता है।

18. भारी जल एक प्रकार का मन्दक है।

19. कठोर जल साबून से कपडे धोने और बाॅयलर्स में प्रयोग के लिये उपयुक्त नही होता है।

20. फोटोग्राफी रंगीन फोटो फिल्म को साफ करने में आक्जैलिक अम्ल प्रयोग किया जाता है।

21. पानी का भारीपन सोडियम और मैग्निशियम के सिलिकेटो के कारण होता है।

22. लहसुन और प्याज में आने वाली तीक्ष्ण गन्ध उनमे पौटेशियम की उपस्थिति के कारण आती है।

23. पनीर एक जैल का उदाहरण है।

24. फलों के रस में मैलिक अम्ल पाया जाता है।

25. अम्लीय स्त्रवण जठर की विशिष्ठता है।

26. आॅक्जैलिक अम्ल का प्रयोग दाग निकालने में किया जाता है।

27. रासानियक तत्व के अणु के सन्दर्भ में चुम्बकिय क्वाण्टम संख्या का सम्बंध अभिविन्यास से है।

28. जर्मन सिल्वर में निकिल , क्रोमियम और ताॅबे का मिश्रण होता है ।

29. वाहनों से निकलने वाले धुऐं में सीसा एक प्रमुख हानिकारक तत्व है इससे मानसिक रोग होता है।

30. ब्लीचिंग पाउडर में क्लोरीन तथा हाइपो में सोडियम होता है।

31. लोहे के साथ क्रोमियम मिलाने पर उसमें उच्चताप का प्रतिरोध करने की क्षमता और उच्च कठोरता एवं अपघर्षण प्रतिरोधकता आ जाती है।

32. पैटंोल इंजन में अपस्फोटन या नोदन को कम करने के लिए पैटंोल में टैटंा एथिल लेड को मिलाया जाता है।

33. प्राकृतिक रबड आइसोप्रीन का बहुलक है। प्राकृतिक रबड लैटेक्स दूध के रूप में पेडों से निकाली जाती है।

34. स्टेनलेस स्टील बनाने के लिए निकिल और क्रोमियम को प्रयोग किया जाता है।

35. कच्चा लोहा, मृदुइस्पात, ढलवा लोहा में कार्बन तत्व अवरोही क्रम में उपस्थित होते हंै।

36. कांसा, तांबा एवं टिन का मिश्रण है।

37. अमोनिया एक रासायनिक यौगिक है।

38. टैफलाॅन तथा डेक्रॅान, प्लास्टिक के वहुलक है

39. नियोप्रीन संश्लेषित रबड है।

40. पाॅलिथीन , पाॅलिएथिलीन का बहुलक है

41. कोयला तथा हाइडंोकार्बन को दहन करने पर उत्पन्न प्रदुषण कार्बनमोनोआॅक्साइड तथा कार्बनडाईआॅक्साइड के मिश्रण होता है।

42. प्राकृतिक रबड को अधिक मजबूत तथा प्रत्यास्थ बनानेे के लिए उसमें सल्फर मिलाया जाता है।

43. कैल्शियम सल्फेट उर्वरक नही है।

44. लोहा पारे के साथ मिलकर अमलगम मिश्रधातु नही बनाता है इसलिए पारे को लोहे के पात्र में रखा जाता है। शेष सभी धातुएं पारे के साथ अमलगम मिश्रधातु बनाती है।

45. हैलोजन गैसों में सबसे अभिक्रियाशील गैस फ्लोरीन होती है।

46. आॅक्सीजन एक अनुचुम्बकीय तत्व है।

47. हाइडंोजन का ईधनमान सर्वाधिक होता है।

48. स्टंीट लाइट के वल्व में सोडियम का प्रयोग होता है।

49. हीमोग्लोबीन में आयरन, क्लोरोफिल में मैग्निशियम, पीतल में ताॅबा एवं विटामिन बी12 में कोबाल्ट उपस्थित होता है।

50. प्लेटिनम सबसे कठोर धातु होती है।

51. हीरा स्वयं में एक मूल तत्व होता है।

52. पेंसिल में लिखने में प्रयोग होने वाला लेड, ग्रेफाइट का बना होता है।

53. फ्यूज में प्रयोग होने वाला तार उच्च प्रतिरोध शक्ति तथा निम्न गलनांक का होता है। 54. जस्ता एक विद्युत अचुम्बकीय पदार्थ है।

55. हीलियम गैस आॅक्सीजन से प्रतिक्रिया नही करती है।

56. अग्निशमन यन्त्र में कार्वनडाई आॅक्साइड गैस का प्रयोग किया जाता है।

57. लोहे पर कलई चढाने के लिए जस्ते का प्रयोग किया जाता है इस प्रक्रिया को गैल्वनाइजेशन यशदलेपन कहते है।

58. आयनिक यौगिक एल्कोहल में अविलेय होते है।

59. एल्युमिनियम चुम्बक के द्वारा आकर्षित नही होती है।

60. पृथ्वी पर लगभग 100 प्रकार के रासायनिक तत्व पाये जाते है।

61. सर्वाधिक स्थायी तत्व आॅक्सीजन है।

62. सोडियम तत्व जल से हल्का होता है।

63. नाइक्रोम एक ऐसा पदार्थ है जो बहुत कठोर तथा बहुत तन्य है।

64. एसिटिलीन का प्रयोग बैल्डिंग उद्योग तथा प्लास्टिक निर्माण करने में प्रयुक्त की जाती है इसका प्रयोग फलों को सुरक्षित रखने में किया जाता है

65. एथिलीन का प्रयोग क्रत्रिम रूप से फलोें को पकाने के लिए किया जाता है।

66. टाॅर्चलाइट , विधुत क्षुरक शेवर आदि साधनों में प्रयुक्त बैटरी में सीसा परआॅक्साइड और सीसा इलैक्टंोड के रूप में प्रयुक्त होता है।

67. कार्बनडाइआॅक्साइड को शुष्क बर्फ भी कहा जाता है।

68. कैंसर के उपचार में कोबाल्ट-60 का प्रयोग किया जाता है।

69. रक्त रोगों के उपचार को ‘‘ जीन थैरपी ‘‘ कहा जाता है।

70. क्रायोजेनिक्स अतिनिम्नताप है इसे परमताप भी कहा जाता है।

71. आर0डी0एक्स0 एक विस्फोटक है।

72. खाद्य पदार्थ के परिरक्षण हेतु बेंजोइक अम्ल प्रयोग किया जाता है।

73. फ्लोरोसेन्ट टयूब प्रतिदिप्ति बल्ब में नियाॅन गैस भरी जाती है।

74. सामान्य टयूब लाइटोें में नियाॅन के साथ सोडियम वाष्प होती है।

75. एल0 पी0 जी0 में मुख्यतः ब्यूटेन गैस होती है।

76. नाइटंोक्लोरोफाॅर्म विस्फोटक नही है।

77. आर्सेनिक-74 टयूमर, केाबाल्ट-60 कैंसर , आयेाडिन-131 थायराॅयड ग्रन्थि की सक्रियता, सोडियम-24 रक्त व्यतिक्रम में प्रयोग किया जाता है।

78. बोरोन कार्बाइड व्यापक रूप से हीरे के पश्चात सबसे कठोर पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होता है।

79. एसिटिक एसिड सिरका बनाने के लिए शीरा अति उत्तम कच्चा माल है।

80. फ्लिन्ट काॅच का उपयोग कैमरा एवं दूरबीन के लैंस व विधुत बल्ब, पाइरेक्स काॅच का उपयोग प्रयोगशाला के उपकरण आदि, क्रुक्स काॅच का उपयोग धूप चश्मों के लेंस तथा पोटाश काॅच का उपयोग टयूब लाइट, बोतलें व दैनिक प्रयोग के बर्तन में किया जाता है।

81. ब्लीचिंग चूर्ण का प्रयोग मुख्य रूप से जल को विसंक्रमित करने के लिए होता है। 82. अम्ल अथवा क्षार के परीक्षण के लिए लिटमस पेपर का प्रयोग किया जाता है जब लिटमस पेपर लाल से नीला हो जाता है तो क्षार होता है एवं नीले से लाल हो जाता है तो अम्ल होता है।

83. एप्सम लवण का प्रयोग सारक शोधक के रूप में होता है।

84. नीला थोथा को काॅपर सल्फेट कहते है।

85. एप्सम साॅल्ट को मैग्निशियम सल्फेट कहते है।

86. बेकिंग सोडा को सोडियम बाई कार्बोनेट कहते है।

87. कास्टिक सोडा को सोडियम हाइडंाक्साॅइड कहते है।

88. चूनापत्थर का रासायनिक नाम कैल्सियम कार्बोनेट है।

89. आॅक्सीजन तथा भारी हाइडंोजन के यौगिक को गुरूजल कहते है।

90. हाइपो जो फोटोग्राफी मंे प्रयोग किया जाता है का रासायनिक नाम है सोडियम थायोसल्फेट है ।

91. मैग्निशियम हाइडंोक्साइड को मिल्क आॅफ मैग्निशिया कहते है।

92. चेचक की खोज एडवर्ड जेनर ने की थी ।

93. पेनिसिलीन की खोज अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने की थी ।

94. एक्स रे की खोज डब्ल्यू के0 रोन्टजन ने की थी ।

95. माणिक्य तथा कोरन्डम एल्यूमिनियम के अयस्क होते है।

96. बालू सिलिकन का अयस्क होता है।

97. संगमरमर कैल्सियम से प्राप्त होता है।

98. टाइटेनियम डाईआॅक्साइड का प्रयोग सफेद पेंट बनाने के लिए किया जाता है।

99. सोडियम सिलिकेट का प्रयोग शीशा बनाने में किया जाता है।

100. पोटेशियम सल्फेट का प्रयोग क्रत्रिम उर्वरक बनाने मे किया जाता है।

भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं का कालक्रम (Chronology)


वर्षघटनामहत्‍व
2 मिलियन ईसा पूर्व से 10,00 ईसा पूर्व
2 मिलियन ईसा पूर्व से 50,000 ईसा पूर्व
50,000 ईसा पूर्व से 40,000 ईसा पूर्व
40,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व
पाषाण काल
पूर्व पाषाण काल
मध्‍य पाषाण काल
अपर पाषाण काल
आग की खोज
चूने पत्‍थर से बने औजारों का प्रयोग किया गया। इनके अवशेष छोटा नागपुर पठार और कर्नूल जिले में प्राप्‍त हुए हैं।
10,000 ईसा पूर्व सेमध्य पाषाण कालशिकारी और चरवाहे
सूक्ष्‍मपाषाण औजारों का प्रयोग
7000 ईसा पूर्वनव पाषण कालअनाज उत्‍पादक
पॉलिश उपकरणों का प्रयोग
पूर्व-हड़प्‍पा काल – 3000 ईसा पूर्वताम्र युगप्रथम धातु – तांबे का प्रयोग
2500 ईसा पूर्वहड़प्‍पा कालकांस्‍ययुगीन सभ्‍यता,
शहरी सभ्‍यता का विकास
1500 ईसा पूर्व-1000 ईसा पूर्वपूर्व-वैदिक कालऋगवैदिक काल
1000 ईसा पूर्व-500 ईसा पूर्वउत्‍तर वैदिक कालमहाजनपदों की स्‍थापना के साथ दूसरे शहरी चरण का विकास
600 ईसा पूर्व – 325 ईसा पूर्वमहाजनपद16 राज्‍यों के साथ विशेष राजतंत्र स्‍थापित हुए
544 ईसा पूर्व – 412 ईसा पूर्वहरयण्‍क वंशबिम्‍बसार, अजातशत्रू और उदयिन
412 ईसा पूर्व – 342 ईसा पूर्वशिशुनाग वंशशिशुनाग और कालाशोक
344 ईसा पूर्व – 323 ईसा पूर्वनन्‍द वंशमहापद्मनंद
563 ईसा पूर्वगौतम बुद्ध का जन्‍मबौद्ध धर्म की स्‍थापना
540 ईसा पूर्वमहावीर का जन्‍मजैन धर्म के 24वें तीर्थंकर
518 ईसा पूर्वपार्सियों का आक्रमणडैरियस
483 ईसा पूर्वप्रथम बुद्ध परिषदराजगीर
383 ईसा पूर्वद्वितीय बुद्ध परिषदवैशाली
326 ईसा पूर्वमेसोडोनियाई आक्रमणग्रीक और भारत के मध्‍य सीधा संपर्क
250 ईसा पूर्वतृतीय बुद्ध परिषदपाटलीपुत्र
322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व
322 ईसा पूर्व – 298 ईसा पूर्व
298 ईसा पूर्व – 273 ईसा पूर्व
273 ईसा पूर्व – 232 ईसा पूर्व
232 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व
मौर्य काल
चंद्रगुप्‍त मौर्य
बिंदुसार
अशोक
उत्‍तरवर्ती मौर्य
भारत का राजनैतिक एकीकरण, अशोक की धम्‍म नीति, कला और वास्‍तुशिल्‍प का विकास
185 ईसा पूर्व – 73 ईसा पूर्वशुंग वंशपुष्‍यमित्र शुंग
73 ईसा पूर्व – 28 ईसा पूर्वकण्‍व वंशवासुदेव ने वंश की स्‍थापना की
60 ईसा पूर्व – 225 ईसवीसातवाहन वंशराजधानी- पैथान, महाराष्‍ट्र
2 ईसा पूर्वइंडो-यूनानीमिनांडर (165 ईसा पूर्व -145 ईसा पूर्व)
1 ईसा पूर्व – 4 ईसवीशकरुद्रदामन (130 ईसवी – 150 ईसवी)
1 ईसा पूर्व – 1 ईसवीपारसीगोंडोफेरेन्‍स के शासन में सेंट थॉमस भारत आए
1 ईसवी -4 ईसवीकुषाणकनिष्‍क (78 ईसवी – 101 ईसवी)
98 ईसवीचतुर्थ बुद्ध परिषदकश्‍मीर
3 ईसा पूर्व – 3 ईसवीसंगम कालसंगम संघ सम्‍मेलन, चेर, चोल और पांड्य शासक
319 ईसवी – 540 ईसवी
319 – 334 ईसवी
335 – 380 ईसवी
380 – 414 ईसवी
415 – 455 ईसवी
455 – 467 ईसवी
गुप्‍त काल
चंद्रगुप्‍त I
समुद्रगुप्‍त
चंद्रगुप्‍त II
कुमारगुप्‍त
स्‍कंदगुप्‍त
319 ईसवी – गुप्‍त काल
भारत का स्‍वर्ण युग
विविध कला एवं साहित्‍य का विकास
मंदिर निर्माण की नगाड़ा शैली
550 ईसवी – 647 ईसवीवर्धन वंशहर्ष (606-647 ईसवी)
कन्‍नौज और प्रयाग सभा का आयोजन हुआ
हुएन-शांग हर्ष के काल में आया
543 – 755 ईसवीवातापी के चालुक्‍यवि‍सरा कला का विकास
575 - 897 ईसवीकांची के पल्‍लवद्रविड़ शैली में मंदिर निर्माण की शुरूआत

मध्‍यकालीन भारत

प्रारंभिक मध्‍यकाल (650 – 1206 ईसवी)
वर्षघटनामहत्‍व
750 – 1150 ईसवीपाल का शासनमुंगेर, बिहार में राजधानी
752 – 973 ईसवीराष्‍ट्रकूटमालखेड़ में राजधानी
730 – 1036 ईसवीप्रतिहारपश्चिमी भारत पर शासन किया
   
712 ईसवीप्रथम मुस्लिम आक्रमणमहमूद बिन तुगलक ने भारत पर आक्रमण किया
850 – 1279 ईसवीचोलराजधानी-तंजौर, द्रविण स्‍थापत्‍य कला का स्‍वर्ण काल
998 – 1030 ईसवीप्रथम तुर्की आक्रमणगजनी के महमूद
1175 – 1206 ईसवीद्व‍ितीय तुर्की आक्रमणगोरी के महमूद
1178 – 1192 ईसवीपृथ्‍वीराज चौहानपृथ्‍वीराज और मुहम्‍मद गोरी के मध्‍य 1191 में तराइन का प्रथम युद्ध
1192, तराइन का द्वितीय युद्ध
सल्‍तनत काल (1206 – 1526 ईसवी)
गुलाम वंश
1206 – 1210 ईसवीकुतुबद्दीन ऐबकलाल बख्‍़स के नाम से ज्ञात, कुतुबमीनार की नींव
1211 – 1236 ईसवीशमशुद्दीन इल्‍तुतमिश़दिल्‍ली
1236 – 1240 ईसवीरज़िया सुल्‍तानभारत पर शासन करने वाली पहली और एकमात्र मुस्लिम महिला
1240 – 1266 ईसवीकमजोर उत्‍तराधिकारी 
1266 – 1287 ईसवीगियासुद्दीन बलबनदीवान-ए-अर्ज की स्‍थापना
खि‍लजी वंश
1290 – 1296 ईसवीजलालुद्दीन ख़ि‍लजीखि‍लजी वंश के संस्‍थापक
1296 – 1316 ईसवीअलाउद्दीन ख़ि‍लजीकईं प्रशासनिक सुधार किए, द़ाग और चेहरा पद्धति की शुरूआत की
तुगलक वंश
1320 – 1325 ईसवीगियासुद्दीन तुगलकसंस्‍थापक
1325 – 1351 ईसवीमोहम्‍मद-बिन-तुगलकप्रशासनिक सुधार लेकर आए और कईं महत्‍वाकांक्षी परियोजनाओं को लागू किया
1351 – 1388 ईसवीफिरोजशाह तुगलकमहान शहरों की स्‍थापना की
1398 – 1399 ईसवीतैमूर आक्रमणचंगेज खां के वंशज तैमूर ने मुहम्‍मद शाह तुगलक के शासनकाल में आक्रमण किया
सैय्यद वंश 1414 – 1450 ईसवी
लोधी वंश 1451 – 1526 ईसवी
1451 – 1488 ईसवीबहलोल लोदीलोदी वंश की स्‍थापना
1489 – 1517 ईसवीसिकंदर लोदीआगरा शहर की स्‍थापना की
1517 – 1526 ईसवीइब्राहिम लोदीबाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित किया
 विजयनगर और बहमनी राज्‍य
विजयनगर राज्‍य
1336 – 1485 ईसवीसंगम वंशहरिहर और बुक्‍का द्वारा स्‍थापना
1485 – 1505 ईसवीसुलुव वंशसलुव नरसिम्‍हा
1505 – 1570 ईसवीतुलुव वंशवीर नरसिम्‍हा
1509 – 1529 ईसवीकृष्‍ण देव रॉयबाबर के समकालीन एक प्रतिभाशाली विद्वान
1570 – 1650 ईसवीअरावीडू वंशतिरुमल द्वारा स्‍थापित
बहमनी राज्‍य
1347 – 1358 ईसवीअलाउद्दीन हसन बहमन शाहगुलबर्गा में बहमनी साम्राज्‍य की स्‍थापना की
1397 – 1422 ईसवीताज-उद्दीन फिरोज शाह 
1422 – 1435 ईसवीअहमद शाह वली 
 मुगल साम्राज्‍य
1526 – 1530 ईसवीबाबरपानीपत के प्रथम युद्ध के बाद मुगल साम्राज्‍य की स्‍थापना की
1530 – 1540 ईसवी
1555 – 1556 ईसवी
हुमांयुशेरशाह सूरी द्वारा पराजित
1540 – 1555 ईसवीसूर साम्राज्‍यशेरशाह ने हुमांयु को हराया और 1540-45 ईसवी तक शासन किया
1556 ईसवीपानीपत की दूसरी लड़ाईअकबर बनाम हेमू
1556 – 1605 ईसवीअकबरदीन-ए-इलाही की स्‍थापना की,
मुगल साम्राज्‍य का विस्‍तार किया
1605 – 1627 ईसवीजहांगीरकैप्‍टन विलियम हॉकिन्‍स और सर थॉमस रो, मुगल दरबार में पधारे
1628 -1658 ईसवीशाहजंहामुगल साम्राज्‍य एवं कला और स्‍थापत्‍य का उत्‍कृष्‍ट समय
1658 – 1707 ईसवीऔरंगजेबमुगल साम्राज्‍य के पतन की शुरूआत
1707 – 1857 ईसवीउत्‍तरवर्ती मुगलशासकअंग्रेजों के ताकतवर बनने के साथ ही मुगल साम्राज्‍य में फूट
मराठा राज्‍य और मराठा संघ
मराठा राज्‍य 1674 – 1720 ईसवी
1674 – 1680 ईसवीशिवाजीऔरंगजेब के समकालीन और दक्‍कन में मुगलों की सबसे बड़ी चुनौती
1680 – 1689 ईसवीशंभाजी 
1689 – 1700 ईसवीराजाराम 
1700 – 1707 ईसवीताराबाई 
1707 – 1749 ईसवीसाहूपेशवा का उदय
1713 – 1720 ईसवीबालाजी विश्‍वनाथप्रथम पेशवा
मराठा संघ 1720 – 1818 ईसवी
1720 – 1740 ईसवीबाजी राव I 
1740 – 1761 ईसवीबालाजी बाजी राव 
1761 ईसवीपानीपत का तृतीय युद्धअहमद शाह अब्‍दाली द्वारा मराठों की हार
1761 – 1818 ईसवीउत्‍तरवर्ती शासक 
 आंग्‍ल-मराठा युद्ध
1775 – 1782 ईसवीप्रथम आंग्‍ल-मराठा युद्धब्रिटिश की हार
1803 – 1806 ईसवीद्वितीय आंग्‍ल-मराठा युद्धमराठों की हार हुई और उन्‍होंने सहायक संधि पर हस्‍ताक्षर किए
1817 – 1818 ईसवीतृतीय आंग्‍ल-मराठा युद्धमराठों की निर्णायक रूप से हार हुई

आधुनिक भारत

बंगाल
1717 – 1727 ईसवीमुर्शिद कुली खानबंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद स्‍थानांतरित की गई
1727 – 1739 ईसवीशुजाउद्दीन 
1739 – 1740 ईसवीसरफ़राज खान 
1740 – 1756 ईसवीअलिवर्दी खान 
1756 – 1757 ईसवीसिराजुद्दौलाप्‍लासी की लड़ाई
1757 – 1760 ईसवीमीर ज़ाफर 
1760 – 1764 ईसवीमीर कासिमबक्‍सर का युद्ध
 मैसूर
1761 – 1782 ईसवीहैदर अलीआधुनिक मैसूर राज्‍य की स्‍थापना
1766 – 1769 ईसवीप्रथम आंग्‍ल-मैसूर युद्धहैदर अली ने अंग्रेजों को हराया
1780 – 1784 ईसवीद्वितीय आंग्‍ल-मैसूर युद्धहैदर अली की सर आयरकूट के हाथों पराजय हुई
1782 – 1799 ईसवीटीपू सुल्‍तानद्वितीय युद्ध जारी रहा
1790 – 1792 ईसवीतृतीय आंग्‍ल-मैसूर युद्धटीपू ने आधे से अधिक राज्‍य जीत लिया
1799चतुर्थ आंग्‍ल-मैसूर युद्धटीपू सुल्‍तान की मृत्‍यु
 पंजाब
1792 – 1839 ईसवीमहाराज रणजीत सिंहसिक्‍ख शासन की स्‍थापना
1845 – 1846 ईसवीप्रथम आंग्‍ल-सिक्‍ख युद्धसिक्‍ख पराजित हुए
1848 – 1849 ईसवीद्वितीय आंग्‍ल-सिक्‍ख युद्धडलहौजी ने पंजाब का विलय किया
 भारत में यूरोपीयों का आगमन
1498पुर्तगाली ईस्‍ट इंडिया कंपनीकोचीन और गोवा में मुख्‍यालय स्‍थ‍ापित किए
1600ब्रिटिश ईस्‍ट इंडिया कंपनीमद्रास, कलकत्‍ता और बम्‍बई
1602डच ईस्‍ट इंडिया कंपनीपुलिकट, नागापट्टनम
1616डैनिश ईस्‍ट इंडिया कंपनीसेराम्‍पोर
1664फ्रेंच ईस्‍ट इंडिया कंपनीपांडिचेरी
 कर्नाटक युद्ध
1746-48प्रथम आंग्‍ल-फ्रांस युद्धएक्‍स-ला-चापल की संधि
1749-54द्व‍ितीय आंग्‍ल-फ्रांस युद्धपांडिचेरी की संधि
1758-63तृतीय आंग्‍ल-फ्रांस युद्धपेरिस की संधि
स्‍वतंत्रता संघर्ष
1857प्रथम भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम युद्धसामाजिक-धार्मिक और आर्थिक कारणों के कारण क्रांति
1885कांग्रेस का गठनए. ओ. ह्यूम
1885 – 1905नरमपंथी कालदादाभाई नारौजी और सुरेन्‍द्रनाथ बनर्जी का प्रभुत्‍व
1905 – 1917चरमपंथी काललाल-बाल-पाल और अरविंदो घोष का प्रभुत्‍व
1905बंगाल विभाजनकर्ज़न द्वारा बंगाल विभाजन की घोषणा
1905 – 1908स्‍वदेशी आंदोलनविदेशी वस्‍तुओं का बहिष्‍कार
1906मुस्लिम लीग का गठन 
1906INC का कलकत्‍ता सत्र
(INC: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
स्वराज को लक्ष्‍य बनाया गया
1907सूरत विभाजनपूरे भारत में आंदोलन के विस्‍तार पर प्रश्‍न
1909मार्ले-मिंटो सुधारमुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन
1915 – 1916होमरूल आंदोलनबाल गंगाधर तिलक और ऐनी बेसेंट
1916लखनऊ समझौताकांग्रेस और लीग के मध्‍य समझौता
1916लखनऊ सत्रकांग्रेस में चरमपंथियों का प्रवेश
गांधी काल
प्रारंभि‍क जीवन
1893 – 1914दक्षिण अफ्रीका में गांधी जीनैटल इंडियन कांग्रेस की स्‍थापना की, अंग्रेजों की ज्‍यादतियों के खिलाफ सत्‍याग्रह और सी.डी.एम.
1915 – 1948भारत में गांधी जी 
1915बंबई पहुंचे। प्रथम दो वर्ष भारत का भ्रमण किया और किसी राजनैतिक आंदोलन में भाग नहीं लिया 
1917चंपारण अभियाननील की खेती के किसानों के समर्थन में
1918अहमदाबादप्रथम भूख हड़ताल
1918खेड़ाप्रथम असहयोग आंदोलन
1919रॉलेट सत्‍याग्रहरॉलेट एक्‍ट और जलियावाला बाग नरसंहार के खिलाफ
1920-22असहयोग और खिलाफ़त आंदोलन 
1924बेलगांव सत्रगांधी जी कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्‍त हुए
1930 -34नागरिक अवज्ञा आंदोलनदांडी यात्रा
गांधी-इरविन समझौता
द्वितीय गोलमेज सम्‍मेलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से चालू हुआ
1940-41व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह 
1942भारत छोड़ो आंदोलनकरो या मरो
इस काल के दौरान महत्‍वपूर्ण घटनाएं
1919रॉलेट एक्‍टगांधी जी ने रॉलेट सत्‍याग्रह का आवाहन किया
1919जलियावाला बाग नरसंहार 
1920-22खिलाफ़त और असहयोग आंदोलनहिंदु मुस्लिम एकता
1922चौरी चौरा कांडगांधी जी ने एन.सी.एम. वापिस लिया
1923कांग्रेस खिलाफ़त स्‍वराज दिवसविधायी परिषद में प्रवेश
1927साइमन कमीशन1919 अधिनियम की समीक्षा करने के लिए सभी श्‍वेत कमीशन
1928नेहरू समिति की रिपोर्टसंविधान के सिद्धांत तय करने के लिए
1929जिन्‍ना के 14 सूत्र 
1929लाहौर सत्रपूर्ण स्‍वराज
1930नागरिक अवज्ञा आंदोलनदांडी यात्रा
1931गांधी-इरविन समझौतागांधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्‍मेलन में भाग लिया
1931लंदन में दूसरा गोलमेज सम्‍मेलन आयोजित हुआ 
1932साम्‍प्रदायिक पंचाट 
1932पूना समझौता 
1935भारत सरकार अधिनियमअंनतिम स्‍वायत्‍ता
1937कांग्रेस का 18 महीने का शासन शुरू हुआ 
1939-45द्वितीय विश्‍व युद्ध की शुरूआत 
1939कांग्रेस मंत्रियों ने इस्‍तीफा दिया 
1940अगस्‍त प्रस्‍तावलिनलिथगो ने विश्‍व युद्ध में भारत से सहायता करने के लिए आग्रह किया
1941व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह 
1942क्रिप्‍स मिशन 
1942भारत छोड़ो आंदोलन 
1943गांधी जी का 21 दिन का उपवास 
1944सी. आर. सूत्र 
1945वॉवेल योजना और शिमला समझौता 
1945आई.एन.ए मुकदमा 
1946आर.आई.एन. रेटिंग विद्रोह 
1946कैबिनेट मिशन योजना 
1946अंतरिम सरकार का गठन 
1946संविधान सभा का गठन 
1947एटली की घोषणा 
1947माउंटबेटेन योजना 
1947भारतीय स्‍वतंत्रता अधिनियम, 1947

इतिहास - बौद्ध धर्म और जैन धर्म


बौद्ध एवं जैन धर्म समान परंपरा की दो प्रमुख शाखाएं हैं जो आज भी अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। बौद्ध एवं जैन धर्म की उत्‍पत्ति समाज में व्‍याप्‍त घोर निराशावाद के समय में हुई और दोनों धर्म में कुछ बिन्‍दु समान है। बौद्ध एवं जैन धर्म के सबसे अधिक अनुयायी व्‍यापारिक वर्ग से आते हैं। महावीर और बुद्ध ने लोगों को अपना संदेश सामान्‍य जनमानस की भाषा में प्रसारित किया।
1) उत्‍पत्‍ति के कारण
1. ब्राह्मण नामक पुरोहि‍त वर्ग के प्रभुत्‍व के विरुद्ध क्षत्रियों की प्रतिक्रिया। महावीर और गौतम बुद्ध, दोनों क्षत्रिय कुल के थे।
2. वैदिक बलिदानों और खाद्य पदार्थों के लिए मवेशियों की अंधाधुंध हत्याओं ने नईं कृषि अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर दिया, जो खेती करने के लिए मवेशियों पर निर्भर थी। बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म दोनों इस हत्या के विरुद्ध खड़े हो गए थे।
3. पंच चिन्‍हित सिक्‍कों के प्रचलन और व्‍यापार एवं वाणिज्‍य में वृद्धि के साथ शहरों के विकास ने वैश्‍यों के महत्‍व को बढ़ावा दिया, जो अपनी स्‍थिति में सुधार करने के लिए एक नए धर्म की तलाश में थे। जैन धर्म एवं बैद्ध धर्म ने उनकी जरूरतों को सुलझानें में सहायता की।
4. नए प्रकार की संपत्‍ति से सामाजिक असमानताएं पैदा हो गईं और आम लोग अपने जीवन के प्रारंभिक स्‍वरूप में जाना चाहते थे।
5. वैदिक धर्म की जटिलता और अध: पतन में वृद्धि हुई।
2) जैन धर्म और बौद्ध धर्म और वैदिक धर्म के बीच अंतर
1. वे मौजूदा वर्ण व्‍यवस्‍था को कोई महत्‍व नहीं देते थे।
2. उन्‍होंने अहिंसा के सुसमाचार का प्रचार किया।
3. उन्‍होंने ब्राह्मण द्वारा निंदित धन उधारदाताओं सहित वैश्‍यों को शामिल किया।
4. वे साधारण, नैतिकतावादी और तपस्‍वी जीवन को पसंद करते थे।

बौद्ध धर्म

1)गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म
गौतम बुद्ध का जन्‍म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्‍तु के निकट लुम्‍बिनी नामक स्‍थान पर शाक्‍य वंश के राजा के यहां हुआ था। इनकी माता कौशल वंश की राजकुमारी थीं। 29 वर्ष की आयु में बुद्ध के जीवन के चार दृश्‍य उन्‍हें त्‍याग के मार्ग पर ले गए। वे दृश्‍य निम्‍नानुसार थे-
1. एक बूढ़ा आदमी
2. एक बीमार व्‍यक्‍ति
3. एक सन्‍यासी
4. एक मृत व्‍यक्‍ति
बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएं
घटनास्‍थानप्रतीक
जन्‍मलुम्‍बनीकमल और सांड
महाभिनिष्‍क्रमण घोड़ा
निर्वाणबोध गयाबोधि वृक्ष
धर्मचक्र प्रवर्तनसारनाथचक्र
महापरिनिर्वाणकुशीनगरस्‍तूप
2) बौद्ध धर्म के सिद्धांत
a. चार आर्य सत्‍य
1. दुख- जीवन दुखों से भरा है।
2. समुदाय - ये दुखों का कारण होते हैं।
3. निरोध- ये रोके जा सकते हैं।
4. निरोध गामिनी प्रतिपद्या- दुखों की समाप्‍ति का मार्ग
b. अष्‍टांगिक मार्ग
1. सम्‍यक दृष्‍टि
2. सम्‍यक संकल्‍प
3. सम्‍यक वाणी
4. सम्‍यक कर्मान्‍त
5. सम्‍यक आजीव
6. सम्‍यक व्‍यायाम
7. सम्‍यक स्‍मृ‍ति
8. सम्‍यक समाधि
c. मध्‍य मार्ग- विलासिता और मितव्‍ययिता दोनों का त्‍याग करना
d. त्रिरत्‍न- बुद्ध, धर्म और संघ
3) बौद्ध धर्म की मुख्‍य विशेषताएं और इसके प्रसार के कारण
1. बौद्ध धर्म को ईश्‍वर और आत्‍मा पर विश्‍वास नहीं था।
2. महिला की संघ में प्रविष्‍टि स्‍वीकार्य थी। जाति और लिंग से पृथक संघ सभी के लिए खुला था।
3. पाली भाषा का प्रयोग किया गया, जो आम लोगों के बीच बौद्ध सिद्धांतों के प्रसार में मददगार सिद्ध हुई।
4. अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसे मध्‍य एशिया, पश्‍चिम एशिया और श्रीलंका में फैलाया।
बौद्ध सभाएं
  • प्रथम परिषद: प्रथम परिषद वर्ष 483 ईसा पूर्व में राजा अजातशत्रु के संरक्षण में बिहार में राजगढ़ के पास सप्‍तपर्णी गुफाओं में आयोजित की गई, प्रथम परिषद के दौरान उपाली द्वारा दो बौद्ध साहित्‍य विनय और सुत्‍ता पिताका संकलित किए गये।
  • द्वितीय परिषद: द्वितीय परिषद वर्ष 383 ईसा पूर्व में राजा कालाशोक के संरक्षण में वैशाली में आयोजित की गई थी।
  • तृतीय परिषद: तृतीय परिषद वर्ष 250 ईसा पूर्व में राजा अशोक महान के संरक्षण में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई थी, तृतीय परिषद के दौरान अभिधम्‍म पिताका को जोड़ा गया और बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथ त्रिपिटक को संकलित किया गया।
  • चतुर्थ परिषद: चतुर्थ परिषद वर्ष 78 ईस्‍वीं में राजा कनिष्‍क के संरक्षण में कश्‍मीर के कुण्‍डलवन में आयोजित की गई थी, चतुर्थ परिषद के दौरान हीनयान और महायान को विभाजित किया गया था।
4) बौद्ध धर्म के पतन के कारण
1. बौद्ध धर्म उन धार्मिक क्रियाओं और समारोहों के अधीन हो गया, जिनकी उन्‍होंने मूल रूप से निंदा की थी।
2. उन्‍होंने पाली छोड़कर संस्‍कृत को अपना लिया। उन्‍होंने मूर्ति पूजा शुरू कर दी और भक्‍तों से कईं समान प्राप्‍त किए।
3. मठ आसानी से प्‍यार करने वालों के वर्चस्‍व के अधीन हो गए और भ्रष्‍ट प्रथाओं के केंद्र बन गए।
4. वज्रायन प्रथा का विकास होने लगा।
5. बौद्ध महिलाओं को वासना की वस्‍तु के रूप में देखने लगे।
5) बौद्ध धर्म का महत्‍व और प्रभाव
a. साहित्‍य
1. त्रिपिटक
सुत्‍त पिताका- बुद्ध के वचन
विनय पिताका- मठ के कोड
अभिधम्‍म पिताका- बुद्ध के धार्मिक प्रवचन
2. मिलिंदपान्‍हों- मींदर और संत नागसेना के बीच के संवाद
3. दीपावाम्‍श (Dipavamsha) और महावाम्‍श (Mahavamsha) – श्रीलंका का महान इतिहास
4. अश्‍वघोष के द्वारा बौद्धचरित्र

b. संप्रदाय
1. हीनयान (Lesser Wheel)- ये निर्वाण प्राप्‍ति की गौतम बुद्ध की वास्‍तविक शिक्षाओं में विश्‍वास करते हैं। वे मूर्ति पूजा में विश्‍वास नहीं करते और हीनयान पाठ में पाली भाषा का प्रयोग करते थे।
2. महायान (Greater Wheel)- इनका मानना है कि निर्वाण गौतम बुद्ध की कृपा और बोधिसत्‍व से प्राप्‍त किया जा सकता है न कि उनकी शिक्षा का पालन करके। ये मूर्ति पूजा पर विश्‍वास करते थे और महायान पाठ में संस्‍कृत भाषा का प्रयोग करते थे।
वज्रायन- इनका मानना है कि निर्वाण जादू और काले जादू की सहायता से प्राप्‍त किया जा सकता है।
c. बोधिसत्‍व
1. वज्रपाणि
2. अवलोकितेश्‍वरा या पद्मपाणि
3. मंजूश्री
4. मैत्रीय
5. किश्‍तिग्रह
6. अमिताभ/अमित्‍युषा
d. बौद्ध धर्म की वास्‍तु कला
1. पूजा का स्‍थल- बुद्ध या बोधिसत्‍व के अवशेषों वाले स्‍तूप। चैत्‍य, प्रार्थना कक्ष जबकि विहार, भिक्षुओं के निवास स्‍थान थे।
2. गुफा वास्‍तुकला का विकास- जैसे गया में बराबर गुफाएं
3. मूर्ति पूजा और मूर्तियों का विकास
4. उत्‍कृष्‍ट विश्‍वविद्यालयों का निर्माण जिसने पूरे विश्‍व के छात्रों को आ‍कर्षित किया।

जैन धर्म

जैन धर्म 24 तीर्थंकरों में विश्‍वास करता है जिसमें ऋषभदेव सबसे पहले और महावीर, बुद्ध के समकालीन 24वें तीर्थंकर हैं। 23वें तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ (प्रतीक: नाग) बनारस के राजा अश्‍वसेन के पुत्र थे। 24वें और अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर (प्रतीक: शेर) थे। उनका जन्म कुंडग्राम (बिहार जिला मुजफ्फरपुर) में 598 ईसा पूर्व में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ ‘ज्ञातृक कुल’ के मुखिया थे। उनकी मां त्रिशला, वैशाली के लि‍च्छवी के राजा चेतक की बहन थीं। महावीर, बिंबिसार से संबंधित थे। यशोदा से विवाह के बाद बेटी प्रियदर्शनी का जन्‍म हुआ, जिनके पति जमाली उनके पहले शिष्य बने। 30 वर्ष की उम्र में, अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, वह सन्‍यासी बन गए। अपने सन्‍यास के 13वें वर्ष (वैशाख के 10वें वर्ष) में, जृम्‍भिक ग्राम के बाहर, उन्हें सर्वोच्च ज्ञान (कैवल्‍य) की प्राप्‍ति हुई। तब से उन्‍हें जैन या जितेंद्रिय और महावीर और उनके अनुयायियों को जैन नाम दिया गया था। उन्हें अरिहंत की उपाधि प्राप्‍त हुई, अर्थात्, योग्यता। 72 वर्ष की आयु में, 527 ईसा पूर्व में, पटना के पास पावा में उनकी मृत्यु हो गई।
जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञाएं
1. अहिंसा- हिंसा न करना
2. सत्‍य- झूठ न बोलना
3. अस्‍तेय- चोरी न करना
4. अपरिग्रह- संपत्‍ति का अधिग्रहण न करना
5. ब्रह्मचर्य- अविवाहित जीवन
तीन मुख्‍य सिद्धांत
1. अहिंसा
2. अनेकांतवाद
3. अपरिग्रह
जैन धर्म के त्रिरत्‍न
1. सम्‍यक दर्शन- सम्‍यक श्रद्धा
2. सम्‍यक ज्ञान- सम्‍यक जन
3. सम्‍यक आचरण – सम्‍यक कर्म
ज्ञान के पांच प्रकार
1. मति जन
2. श्रुत जन
3. अवधि जन
4. मनाहप्रयाय जन
5. केवल जन
जैन सभाएं
1. प्रथम सभा 300 ईसा पूर्व चंद्रगुप्‍त मौर्य के संरक्षण में पाटलिपुत्र में हुई जिसके दौरान 12 अंग संकलित किए गए।
2. द्वितीय सभा 512 ईसा में वल्‍लभी में हुई जिसके दौरान 12 अंग और 12 उपअंग का अंतिम संकलन किया गया।
संप्रदाय
1. श्‍वेतांबर- स्‍थूलभद्र- जो लोग सफेद वस्‍त्र धारण करते थे। जो लोग अकाल के दौरान उत्‍तर में रहे थे।
2. दिगंबर- भद्रबाहु- मगध अकाल के दौरान डेक्‍कन और दक्षिण में भिक्षुओं का पलायन। ये नग्‍न रहते थे।
जैन साहित्‍य
जैन साहित्‍यकार प्रकृत का प्रयोग करते थे, जो संस्कृत के प्रयोग की तुलना में लोगों की एक आम भाषा है। इस प्रकार से जैन धर्म लोगों के माध्यम से दूर तक गया। महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य इस प्रकार हैं-
1. 12 अंग
2. 12 उपअंग
3. 10 परिक्रण
4. 6 छेदसूत्र
5. 4 मूलसूत्र
6. 2 सूत्र ग्रंथ
7. संगम साहित्‍य का भाग भी जैन विद्वानों की देन है।