पड़ोसी देश चीन भारत के सामने एक बार फिर झुक गया है। चीन सिक्किम में भारत, भूटान और चीन के ट्राई-जंक्शन पर मौजूद अपनी सेना को हटाने पर राजी हो गया है। पिछले 2 महीने से इस सीमा पर विवाद चल रहा है। धीरे-धीरे दोनों देशों की सेनाएं सीमा से हटेगी।
इससे पहले 8 जुलाई को चीन ने भारत से डोकलाम विवाद के चलते अपने नागरिकों के लिए एक सुरक्षा एडवाइजरी जारी की है जिसमें उसने भारत की यात्रा कर रहे अपने नागरिकों को सतर्क रहने और आवश्यक एहतियात बतरने को कहा है। नई दिल्ली स्थिति चीनी दूतावास ने यह एडवाइजरी जारी की है।
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, यह यात्रा अलर्ट नहीं बल्कि चीनी यात्रियों को सतर्क रहने का परामर्श है। बता दें कि चीन 5 जुलाई को ही कह चुका है कि वे भारत जाने वाले उसके नागरिकों के लिए सुरक्षा के चलते ऐसा करेगा। उसने सरकारी मीडिया में आई इस तरह की खबरों को तवज्जो नहीं दी थी जिनमें चीनी निवेशकों से सीमा पर गतिरोध के मद्देनजर सतर्क रहने को कहा गया था।
भूटान-सिक्किम-तिब्बत तिहरे विवाद के चलते पिछले एक महीने से भारत-चीन आमने-सामने की स्थिति में हैं और इस मसले को लेकर दोनों ही देश एक-दूजे पर तीखी प्रतिक्रियाएं भी कर रहे हैं। बता दें कि चीन ने 1962 के युद्ध का हवाला देकर भारत को डराने का भरसक प्रयास किया वहीं भारत ने भी साफ कर दिया कि 2017 का भारत अब वैसा नहीं है जैसा चीन समझ रहा है।
रक्षा मामलों के जानकार मेजर जनरल (रिटा.) अशोक मेहता का कहना है कि भारत और चीन के बीच में डोकलाम के मुद्दे पर युद्ध नहीं होगा। स्थानीय स्तर का संघर्ष जरूर हो सकता है। लेकिन राजनयिक स्तर के सूत्रों का कहना है कि स्थानीय स्तर के संघर्ष की भी संभावना कम है।
क्योंकि भारत और चीन इसके बाद का अर्थ समझते हैं। भारत और चीन दोनों बड़ी सैन्य शक्ति वाले देश हैं। दोनों देशों के पास पैदल सेना, नौसेना, वायुसेना की मजबूत ताकत है। घातक हथियारों का जखीरा है और परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं।
दोनों देशों के सामरिक रणनीतिकारों को इसका ठीक-ठीक अंदाजा है कि युद्ध की दशा में नफा-नुकसान का स्तर क्या होगा। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शरीक होने को लेकर अभी वह कुछ नहीं सकते। रवीश कुमार की इस अनभिज्ञता के माने हैं। इस बार का ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन चीन के श्योमोन शहर में हो रहा है।
रूस की पहल पर भारत, चीन और ब्राजील एक मंच के नीचे आए थे। बाद में इसमें दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हुआ। ऐसे में चीन और रूस दोनों के लिए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन, आपसी सहयोग के खास माने हैं।
रूस और चीन कभी नहीं चाहेंगे कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की सहएकता खतरे में पड़े। माना यह जा रहा है कि चीन पर दबाव और रूस पर चीन को डोकलाम गतिरोध में न्यायपूर्ण कदम उठाने के लिए भारत ब्रिक्स में न शरीक होने का प्रस्ताव भेजकर दबाव बना सकता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की टिप्पणी को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।
बताते चलें कि डोपसांग(लद्दाख) में 2013 में चीनी घुसपैठ और सैनिकों के टिक जाने के बाद भारत ने इस तरह की कूटनीति का प्रयोग किया था। चीन के शिखर नेता को कुछ दिन बाद भारत दौरे पर आना था।
जबकि चीन के सैनिक डोपसांग में डटे हुए थे। ऐसे में भारत को कहना पड़ा था कि ऐसी दशा में चीन के शिखर नेता का भारत दौरा मुनासिब नहीं होगा। इसके बाद मामले का हल निकल आया था।
इससे पहले 8 जुलाई को चीन ने भारत से डोकलाम विवाद के चलते अपने नागरिकों के लिए एक सुरक्षा एडवाइजरी जारी की है जिसमें उसने भारत की यात्रा कर रहे अपने नागरिकों को सतर्क रहने और आवश्यक एहतियात बतरने को कहा है। नई दिल्ली स्थिति चीनी दूतावास ने यह एडवाइजरी जारी की है।
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, यह यात्रा अलर्ट नहीं बल्कि चीनी यात्रियों को सतर्क रहने का परामर्श है। बता दें कि चीन 5 जुलाई को ही कह चुका है कि वे भारत जाने वाले उसके नागरिकों के लिए सुरक्षा के चलते ऐसा करेगा। उसने सरकारी मीडिया में आई इस तरह की खबरों को तवज्जो नहीं दी थी जिनमें चीनी निवेशकों से सीमा पर गतिरोध के मद्देनजर सतर्क रहने को कहा गया था।
भूटान-सिक्किम-तिब्बत तिहरे विवाद के चलते पिछले एक महीने से भारत-चीन आमने-सामने की स्थिति में हैं और इस मसले को लेकर दोनों ही देश एक-दूजे पर तीखी प्रतिक्रियाएं भी कर रहे हैं। बता दें कि चीन ने 1962 के युद्ध का हवाला देकर भारत को डराने का भरसक प्रयास किया वहीं भारत ने भी साफ कर दिया कि 2017 का भारत अब वैसा नहीं है जैसा चीन समझ रहा है।
रक्षा मामलों के जानकार मेजर जनरल (रिटा.) अशोक मेहता का कहना है कि भारत और चीन के बीच में डोकलाम के मुद्दे पर युद्ध नहीं होगा। स्थानीय स्तर का संघर्ष जरूर हो सकता है। लेकिन राजनयिक स्तर के सूत्रों का कहना है कि स्थानीय स्तर के संघर्ष की भी संभावना कम है।
क्योंकि भारत और चीन इसके बाद का अर्थ समझते हैं। भारत और चीन दोनों बड़ी सैन्य शक्ति वाले देश हैं। दोनों देशों के पास पैदल सेना, नौसेना, वायुसेना की मजबूत ताकत है। घातक हथियारों का जखीरा है और परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं।
दोनों देशों के सामरिक रणनीतिकारों को इसका ठीक-ठीक अंदाजा है कि युद्ध की दशा में नफा-नुकसान का स्तर क्या होगा। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शरीक होने को लेकर अभी वह कुछ नहीं सकते। रवीश कुमार की इस अनभिज्ञता के माने हैं। इस बार का ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन चीन के श्योमोन शहर में हो रहा है।
रूस की पहल पर भारत, चीन और ब्राजील एक मंच के नीचे आए थे। बाद में इसमें दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हुआ। ऐसे में चीन और रूस दोनों के लिए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन, आपसी सहयोग के खास माने हैं।
रूस और चीन कभी नहीं चाहेंगे कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की सहएकता खतरे में पड़े। माना यह जा रहा है कि चीन पर दबाव और रूस पर चीन को डोकलाम गतिरोध में न्यायपूर्ण कदम उठाने के लिए भारत ब्रिक्स में न शरीक होने का प्रस्ताव भेजकर दबाव बना सकता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की टिप्पणी को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।
बताते चलें कि डोपसांग(लद्दाख) में 2013 में चीनी घुसपैठ और सैनिकों के टिक जाने के बाद भारत ने इस तरह की कूटनीति का प्रयोग किया था। चीन के शिखर नेता को कुछ दिन बाद भारत दौरे पर आना था।
जबकि चीन के सैनिक डोपसांग में डटे हुए थे। ऐसे में भारत को कहना पड़ा था कि ऐसी दशा में चीन के शिखर नेता का भारत दौरा मुनासिब नहीं होगा। इसके बाद मामले का हल निकल आया था।
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