अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस: 01 अक्टूबर


अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस (International Day of Older Persons) या 'अंतरराष्ट्रीय वरिष्‍ठ नागरिक दिवस' प्रत्येक वर्ष 1 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस अवसर पर अपने वरिष्‍ठ नागरिकों का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना आवश्यक होता है। आज का वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यत: इस बात से सर्बाधिक दु:खी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है।
इस प्रकार अपने को समाज में एक तरह से  निष्प्रयोज्य समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज सर्बाधिक दु:खी रहता है। वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है। इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है।
वर्ष 2017 का विषय (थीम):
वर्ष 2017 के लिए अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस की थीम "स्टेपिंग इनटू फ्यूचर: टैपिंग द टैलेंट्स, कंट्रीब्यूशन एंड पार्टिसिपेशन ऑफ़ ओल्डर पर्सन्स इन सोसाइटी" है।
इतिहास:
संपूर्ण विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले अन्याय और उनके साथ दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने के साथ-साथ वृद्धों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से 14 दिसंबर, 1990 के दिन संयुक्त राष्ट्र ने यह निर्णय लिया कि हर साल 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
इससे बुजुर्गों को भी उनकी अहमियत का अहसास होगा और समाज के अलावा परिवार में भी उन्हें उचित स्थान दिलवाया जा सकेगा। सबसे पहले 1 अक्टूबर, 1991 को बुजुर्ग दिवस मनाया गया और तब से यह सिलसिला निरंतर जारी है।
भारत में बुजुर्गों की स्थिति:
वैसे तो भारत में भी बुजुर्गों की रक्षा और उन्हें अधिकार दिलवाने के लिए भारत में भी कईकानूनों का निर्माण किया गया है लेकिन आज भी उनका पालन सही तरीके से नहीं किया जाता। केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्‍ठ नागरिकों के आरोग्‍यता और कल्‍याण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्‍यों के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार की।
जिसके तहत व्‍यक्तियों को स्‍वयं के लिए तथा उनके पति या पत्‍नी के बुढ़ापे के लिए व्‍यवस्‍था करने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाता है और साथ ही परिवार वालों को वृद्ध सदस्‍यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्‍साहित करने का भी प्रयास किया जाता है।
इसके साथ ही 2007 में माता-पिता एवं वरिष्‍ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया। इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्‍थापना, चिकित्‍सा सुविधा की व्‍यवस्‍था और वरिष्‍ठ नागरिकों के जीवन और सं‍पत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।
विभिन्न प्रयासों के बावजूद स्थिति चिंताजनक:
हाल ही में 'वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे' के अवसर पर हेल्पेज इंडिया ने बुजुर्गों की स्थिति पर एक सर्वे किया था, जिससे पता चला कि भारत में भी बुजर्गों के साथ बहुत शर्मनाक व्यवहार होने लगा है। खुद बुजुर्गों ने उपेक्षा और बुरे व्यवहार की शिकायत की है। यह अध्ययन देश के 19 छोटे बड़े शहरों में साढ़े चार हजार से अधिक बुजुर्गों पर किया गया है।
जिन बुजुर्गों को सर्वे में शामिल किया गया, उनमें से 44 फीसदी लोगों का कहना था कि सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ बहुत गलत व्यवहार किया जाता है। बेंगलूरू, हैदराबाद, भुवनेश्वर, मुंबई और चेन्नई ऐसे शहर पाये गये, जहां सार्वजनिक स्थानों पर बुजुर्गों से सबसे बुरा बर्ताव होता है।

सर्वे में शामिल बेंगलूरू के 70 फीसदी बुजर्गों ने बताया कि उनको सार्वजनिक स्थान पर बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ता है। हैदराबाद में यह आंकड़ा 60 फीसदी, गुवाहाटी में 59 फीसदी और कोलकाता में 52 फीसदी है। बुजुर्गों के सम्मान के मामले में दिल्ली सबसे आगे दिखी, जहां सिर्फ 23 फीसदी बुजुर्गों को सार्वजनिक स्थान पर बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

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